भारत के इस क्रांतिकारी के बारे में सायद आप जानते होंगे। इनकी टोपी विश्व में प्रशिद्ध थी। वे जिस प्रकार की टोपी बनाते थे उस प्रकार की तोपी को बेरे कहते है। इस क्रान्तिकारी का नाम चे ग्वेरा है।
यह जिस प्रकार की टोपी बनाते थे उस प्रकार की टोपी को आयरिश क्रन्तिकारी पहना करते थे।
वह व्यक्ति जो अमेरिका समाज पर वहुत बड़ा संकट वन गया , उस व्यक्ति को मरने के लिये अमेरिका अपनी पूरी ताकत लगते हुए उसे मरने में सफल हो गये ,मरने के बाद भी उन लोगो को डर सताता रहा की उस व्यक्ति का नाम चे ग्वेरा है। अमेरिका के महान क्रांति चे ग्वेरा का जन्म 14 जून सन 1928 में हुआ। चे ग्वेरा का पूरा नाम अर्नेस्टो ग्वेरा दे ला सरना था लेकिन उनको चे नाम से जाना जाता है। ये डाक्टर ,क्रांतिकारी और लेखक गुरिल्ला योद्धा में निर्माण करता रहे है। आज उनके बिजनेस में असफल होने को लेकर चर्चा रहेगी।
चे ग्वेरा ने अपने बिजनेस असफल कैसे हुए।
नेहरू ,जोला ,लेनिन को पढ़ते हुए चे ग्वेरा ने 20 साल की उम्र में ही बिजनेस करने का सुझाव मिला। अपने दोस्तों के साथ मिलकर काक्रोच मरने वाली घरेलू कीटनाशक दवा बनाने और बेचने की योजना बनाई। इस काक्रोच मरने वाली कीटनाशक को गेमेक्सीन और टेलकम पावडर को मिलाकर बनाया जाता था। गेमेक्सीन टिड्डियों को मरने में काम आती है और उसमे से बहुत ख़राब गंध निकलती है। उनके जीवन पर्चे के बारे में वी.के सिंह अपने किताब में बताते है ,उन्होंने फैक्ट्री अपनी खाली गैरेज में की जो उनके घर का सबसे निचला ताल था। गेमेक्सीन के बदबू से बीमारी फैलने लगी जिससे घरवाले और किराहयेदार के दबाव को झेलते हुए उन्होंने अपने काम को जारी रखा। इस काम से लोग एक एक करके बीमार पड़ने लगे। पर चे ग्वेरा ने अपने नाक पर कपड़ा बांध कर अपने बिजनेस को बचने के लिए सबसे अंत तक लगे रहे। और अंत में वह भी बीमारी के कारण बिस्तर पकड़ लिए और इस तरह उनके बिजनेस दि एंड हो गया।
वी. के सिंह के तहत , उनका अगला बिजनेस जुते को होल सेल में खरीदना और बेचना था। बिजनेस के तहत होल सेल से जूता ले आए और गैरेज में बदल कर जूते की पैकिंग शुरू कर दी। लेकिन चे ग्वेरा को जल ही पता चल गया की बहुत मुश्किल से 10 फीसदी जूते की जोड़ी बन पा रही है।और बाकि जुते अलग अलग नाप और रंग के है। ऐसे में उन्होंने शहर में एक पैर वाले लोगो को ढूढ़ना शुरू किया, और उनको जूता बेचना शुरू कर दिए। उन्होंने कुछ जुते को बेच दिए और बाकि जुते अपने खुद पहनना पड़ा। इस तरह महान क्रांति चे ग्वेरा का बिजनेस अधूरा रह गया।
भारत और चे ग्वेरा
चे ग्वेरा ने 1959 में क्यूबा से ‘अमेरिका पिद्दू ‘ बतिस्ता को भागकर नए समाज का निर्माड किया ,जो दिल्ली भी आए। वह कालेज के समय जवाहर लाल नेहर के लिखी डिस्कवरी आफ इंडिया से बहुत ही प्रभावित हुए। नेहरू के विशेष आमंत्रण पर चे 30 जून 1959 को दिल्ली पहुंचे थे। उस समय चे क्यूबा सरकार ले मंत्री थे। भारत यात्रा पर चे ने सर्वसेर्स्ट पत्र ओम थानवी ने एक विस्तार से रिपोट लिखी है। उस रिपोट से पता चला कि 1 जुलाई 1959 को नेहरू और चे ग्वेरा की मुलाकात हुई दोनों लोगो ने साथ खाना खाया। चे ने दिल्ली के आलावा कलकत्ता भी गए वह पर बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात की। यात्रा से लेटने के बाद चे ग्वेरा ने एक रिपोट लिखी और उन्होंने अपने साथी फिदेल कास्त्रो को सौप दिया।