वैद्युत आवेश
महान वैज्ञानिक ने देखा कि अम्बर नामक पदार्थ ऊन से रगड़ा जाता है तो उसमें हल्की वस्तुओं को जैसे कागज के टुकड़े ,तिनके इत्यादि को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है।
- लगभग 2000 वर्ष तक इस बात को कोई महत्व नहीं दिया गया लेकिन बाद में गिलबर्ट ने प्रयोग द्वारा पता लगाया कि ऐसी बहुत सी वस्तुएं हैं जिन को आपस में रगड़ने पर उनके अंदर हल्की वस्तु को आकर्षित करने का गुण आ जाता है क्योंकि इन पदार्थों में इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान होता है
- पदार्थ का गुण जिसके कारण विद्युत एवं चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न करता है इनका या अनुभव करता है
- सामान्य अवस्था में प्रत्येक परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या उसमें नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन की संख्या की बराबर होती है इसलिए परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होता है
- आवेश सदैव द्रव्यमान से बड़े होते हैं
- परमाणु की विद्युत उदासीनता को समाप्त करके आवेशित कणों को उत्पन्न किया जा सकता है
आवेश तथा इलेक्ट्रॉनों की संख्या में सबंध
q = ne जहाँ q = वैद्युत आवेश
n = इलेक्ट्रॉन की संख्या
e = इलेक्ट्रॉन का आवेश
विद्युत धारा
- इसे i से प्रदर्शित करते हैं
- आवेश प्रवाह की दर को वैद्युत धारा कहते हैं अर्थात i = q/t चुकि I = ne/t
विद्युत परिपथ
किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं यदि परिपथ कहीं से टूट जाए तो विद्युत धारा का प्रवाह समाप्त हो जाता है तथा बल दीप्ति नहीं करता है या विद्युत धारा के पद को विद्युत परिपथ कहते हैं
विद्युत परिपथ आरेख
परिपथ के विभिन्न अवयवों को सुविधाजनक प्रतिको द्वारा निरूपित किया जाता है जिसे विद्युत परिपथ आरेख कहते हैं
विद्युत धारा की दिशा
विद्युत धारा की दिशा धन आवेश की गति के दिशा में तथा आवेश की गति की दिशा में के विपरीत मानी जाती है
आवेश की गति की दिशा +
धारा की दिशा➡️
आवेश की गति की दिशा _
⬅️धारा की दिशा
विद्युत धारा का मात्रक
विद्युत धारा का मात्रक मैरी- एम्पियर के सम्मान में एम्पियर रखा गया है
विद्युत धारा का मापन
विद्युत धारा का मापन एंपियर द्वारा करते हैं एंपियर को परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में लगाना चाहिए
विद्युत चालक
वह पदार्थ जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है विद्युत चालक कहलाते हैं।
पृथ्वी, धातु, अम्ल, क्षार, लवण
धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनो का सागर होने के कारण यह विद्युत चालक होता है
विद्युत का चालक या विद्युत रोधी
ऐसे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होता विद्युत अचालक कहलाते हैं
जैसे रबड़, प्लास्टिक, सूखी लकड़ी इत्यादि।
अर्धचालक
ऐसे पदार्थ जो कुछ परिस्थितियों में चालक की तरह तो कुछ परिस्थितियों में अचालक की तरह व्यवहार करता है तो ऐसे पदार्थ को अर्धचालक कहते हैं।
जैसे सिलिकॉन तथा जर्मीनियम
विद्युत विभव
एकांक धन आवेश को अनंत से वैद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य उस बिंदु पर वैद्युत विभव कहलाता है अथातो
जहां w किया गया कार्य है, v = w/q, q = प्रवाहित आवेश , v = विद्युत विभव
इसका मात्रक जूल / कूलाम या बोल्ट होता है।
विभवांतर
वैद्युत क्षेत्र में दो बिंदुओं के बीच एकांक आवेश को ले जाने में किया गया कार्य उन बिंदुओं के बीच का विभवांतर कहलाता है
वोल्ट की परिभाषा
यदि किसी चालक के दो बिंदुओं के बीच एक कूलाम आवेश को स्थानांतरित करने में एक जूल कार्य करना पड़ता है तो उन बिंदुओं के बीच का विभवांतर 1 वोल्ट कहलाता है
विभवांतर का मापन
विभवांतर को वोल्ट मीटर से मापा जाता है
इसको परिपथ के समांतर क्रम में जोड़ते हैं
ओम का नियम
इस नियम के अनुसार किसी चालक के भौतिक अवस्था मैं कोई परिवर्तन नहीं होता है चालक के हीरो के बीच लगा विभक चालक में बहने वाली वैद्युत धारा के समानुपाती होता है।
V∝ i
v = iR , iR = v , R = v/i
भौतिक अवस्था में कोई परिवर्तन ना हो तो चालक के सिरों के बीच लगा विभवांतर वैद्युत चालक में बहने वाली धारा का अनुपात एक नियतांक होता है यही ओम का नियम है
वैद्युत प्रतिरोध
चालक जिस गुण से वैद्युत धारा का विरोध करता है उसे वैद्युत प्रतिरोध कहते हैं
विद्युत प्रतिरोध का मात्रक बोल्ट प्रति एंपियर या होता है
वैघुत प्रतिरोध को R से प्रदर्शित करते हैं
प्रतिरोध का संयोजन
श्रेणी क्रम
श्रेणी क्रम संयोजन में प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है की प्रत्येक प्रतिरोधों का दूसरा सिरा अगले प्रतिरोध की पहले सिरे से जुड़ता है श्रेणी क्रम में सभी प्रतिरोधों में एक ही वह वैघुत धारा बहती है परंतु उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधों के अनुसार अलग-अलग होते हैं
माना प्रतिरोध R1 ,R2 ,R3 परस्पर श्रेणी क्रम में समायोजित है तथा इन प्रतिरोध में धारा प्रवाहित हो रही है यदि प्रतिरोधों के सिरों के विभवांतर v1 ,v2 ,v3 हो तो
ओम के नियम से – V= iR
v1 = iR1
v1 = iR2
v3 = iR3
यदि A और B के बीच विभवांतर v है तो
V= v1 +v2 + v3
v = iR1 + iR2 + iR3
यदि A और B के बीच तुल्य प्रतिरोध R हो
v = iR
समीकरण 1 और 2 को तुलना करने पर
v= iR1 + iR2 +iR3
R = R1 + R2 + R3
श्रेणी क्रम में जुड़े प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है
समांतर क्रम
जब दो या दो से अधिक प्रतिरोध इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उन सभी के पहला शीला एक बिंदु से तथा दूसरा सिरा अन्य बिंदुओं से जुड़ा हो तो इस संयोग को समांतर क्रम कहते हैं
इस संयोग के सभी प्रतिरोधों के बीच एक ही विभवांतर लगता है परंतु उसमें धारा भिन्न-भिन्न होती है
माना प्रतिरोध R1 R2 R3 क्रमशः i1 i2 i3 धाराये बहती हैं बिंदु पर यह तीनों धाराएं मिल जाती हैं और मुख्यधारा i बन जाती है
ओम के नियम से –
v = i1 R1
i1 = v / R1
v = i1 R2
i2 = v / R2
v = i3 R3
i3 = v/ R3
I = i1 +i2 +i3
I = v/R1 + v/R2 + v/R3
समांतर क्रम में जुड़े प्रतिरोध की तुल्य प्रतिरोध का व्युत्पन्न उन प्रतिरोधों के व्युत्पन्नो के योग के बराबर होता है
Note – श्रेणी क्रम में जुड़े प्रत्येक प्रतिरोध में वैद्युत धारा समान बहती है लेकिन इन प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवांतर भिन्न-भिन्न होता है
समांतर क्रम में जुड़े प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवांतर समान होता है लेकिन इनमें बहने वाली धारा भिन्न-भिन्न होती है
ओमिया चालक
जो चालक ओम के नियम का पालन करता है उसे ओमिया चालक कहते हैं
अनओमिया चालक
जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते उसे अनओमीय चालक कहते हैं हां और जो ओम के नियम का पालन नहीं करता वह लैंग म्यूर के नियम का पालन करता है
जैसे – डायोड बल्ब, टायोड बल्ब
समविभव पृष्ठ
वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया ऐसा पृष्ठ जिस पर स्थित बिंदुओं पर वैद्युत विभव सामान हो समविभव पृष्ठ कहलाता है।
वैद्युत 1- संयोजकता किसे कहते हैं?
4- आवर्त सारणी का विकास,वर्गीकरण एवं वर्गीकरण का इतिहास और मेण्डलीफ की आवर्त सारणी , गुण एवं दोष।
5- सहसंयोजक बंध किसे कहते हैं?